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कृषि वस्तुओं के निलंबन का खाद्य कीमतों और कृषि पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव - Impact of suspension of agricultural commodities on food prices and agro-ecosystem

कृषि वस्तुओं के निलंबन का खाद्य कीमतों और कृषि पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव – Impact of suspension of agricultural commodities on food prices and agro-ecosystem

जतिन बब्बर – भारत के प्रमुख बी-स्कूलों में से एक, बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी (BIMTECH), नोएडा और शैलेश जे मेहता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट (SJMSOM), IIT बॉम्बे ने एक्सचेंज ट्रेडेड कमोडिटीज (ETCDs) पर फ्यूचर डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स के निलंबन के प्रभाव की जांच करने के लिए दो अलग-अलग अध्ययन किए। BIMTECH रिपोर्ट कमोडिटी डेरिवेटिव्स पर रोक का अंडरलाइंड कमोडिटी बाजार पर असर, में जनवरी 2016 से अप्रैल 2024 के बीच सरसों बीज, सोयाबीन, सोया तेल, सरसों तेल और पाम ऑयल का अध्ययन किया गया है । यह रिपोर्ट निर्णायक रूप से बताता है कि ETCDs (एक्सचेंज ट्रेडेड कमोडिटीज) के निलंबन के कारण वास्तविक बाजार में में संदर्भ मूल्य की अभाव की स्तिथि उत्पन्न हो जाती है , और इसके परिणामस्वरूप मंडी भाव एक जैसे नहीं रहते । विभिन्न मंडियों में भाव बहुत अलग-अलग होते हैं और कीमतें भी ज्यादा ऊपर-नीचे होती है। शैलेश जे मेहता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट, आईआईटी बॉम्बे द्वारा किए गए अध्ययन का शीर्षक है – कमोडिटी डेरिवेटिव्स पर रोक का कृषि तंत्र पर प्रभाव । इसमें द्वितीयक और प्राथमिक शोध को मिलाकर व्यापक तरीका अपनाया गया। प्राथमिक आंकड़े महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में सर्वेक्षण और बाजार प्रतिभागियों (किसान और एफपीओ समेत) के गहन साक्षात्कार के जरिये इकट्ठे किए गए।, जिसमें सरसों बीज, सोया तेल, सोयाबीन, चना और गेहूं जैसी कमोडिटी को केंद्र में रखा गया। अध्ययन में इस बात का उल्लेख किया गया है डेरिवेटिव्स अनुबंध किसानों और वैल्यू चेन के दूसरे भागीदारों के लिए भाव तय करने तथा जोखिम संभालने का अहम जरिया होते हैं। इसके जरिये वे उतार-चढ़ाव और कृषि आर्थिक क्षेत्र में दूसरे जोखिमों को संभाल सकते हैं।

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साल 2021 में, सेबी ने सात कृषि कमोडिटी/कमोडिटी समूहों में डेरिवेटिव ट्रेडिंग पर रोक लगा दी। इसे 2003 में कमोडिटी एक्सचेंजों के आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक संस्करण के अस्तित्व में आने के बाद से भारतीय कमोडिटी डेरिवेटिव बाजार पर अब तक का सबसे बड़ा प्रतिबंध कहा जा सकता है। हालांकि निलंबन के लिए कोई विशेष कारण नहीं बताया गया, लेकिन ज्यादातर लोग यही मानते हैं कि चढ़ते भावों पर अंकुश लगाने के लिए रोक लगाई गई थी क्योंकि डर था कि डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग से कीमतें बढ़ रही हैं। इस संदर्भ में, भारत के दो प्रतिष्ठित संस्थानों ने ‘कमोडिटी डेरिवेटिव के निलंबन का कमोडिटी इकोसिस्टम पर प्रभाव ‘ का मूल्यांकन करते हुए एक व्यापक अध्ययन किया।

BIMTECH का अध्ययन डॉ. प्रबीना राजीब, डा. रुचि अरोड़ा, बिमटेक से और डॉ. परमा बराई आईआईटी, खड़गपुर द्वारा किया गया जो तीन दृष्टिकोणों पर केंद्रित है

स्थानीय मंडियों के लिए प्राइस एंकर उपलब्ध नहीं होने का असर।

कमोडिटी वायदा पर रोक और थोक तथा रिटेल स्तर पर खाद्य तेल के भाव पर असर।

निलंबित वस्तुओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में हेजिंग दक्षता

अध्ययन पर टिप्पणी करते हुए प्रोफेसर प्रबीना राजीब ने कहा, “भारत में कमोडिटी डेरिवेटिव अनुबंध पर समय-समय पर रोक लगाना चलन जैसा बन गया है, जो न केवल डेरिवेटिव क्षेत्र के विकास में बाधा डाल रहा है, बल्कि समग्र कमोडिटी पारिस्थितिकी तंत्र के विकास को भी प्रभावित कर रहा है। हालांकि, दुनिया भर में कमोडिटी एक्सचेंज सैकड़ों वर्षों से बेरोकटोक कमोडिटी डेरिवेटिव्स अनुबंध चलाते आ रहे हैं, जबकि इन कमोडिटी में अक्सर आपूर्ति और मांग का मेल बिगड़ जाता है और कीमत ऊपर-नीचे होती रहती हैं ।

इस शोध के माध्यम से भारत में रोक के पीछे अंतर्निहित प्रचलित विश्वास प्रणाली में गहराई से जाना और सबसे प्रमुख इकाई – हमारे किसानों और मूल्य श्रृंखला प्रतिभागियों पर इसके प्रभाव को समझना दिलचस्प था। हमारा अध्ययन स्पष्ट करता है कि डेरिवेटिव वायदा कारोबार के बारे में यह धारणा कि मूल्य मुद्रास्फीति की ओर ले जाती है, गलत हो सकती है। खुदरा और थोक मूल्य के हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि विशेष रूप से खाद्य तेलों के लिए, न केवल निलंबन अवधि के दौरान सभी श्रेणियों में कीमतों में वृद्धि हुई है, बल्कि खुदरा उपभोक्ता और भी अधिक कीमत चुका रहे हैं।”

एसोसिएट प्रोफेसर सार्थक गौरव (अर्थशास्त्र) और सहायक प्रोफेसर पीयूष पांडे (वित्त) द्वारा किए गए शैलेश जे मेहता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट आईआईटी बॉम्बे अध्ययन में चार विशिष्ट उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित किया गया।

पांच कमोडिटी डेरिवेटिव्स पर रोक के कृषि तंत्र पर हुए असर की पड़ताल करना।

कमोडिटी पर रोक के बाद पड़ने वाले प्रभाव की तस्वीर पेश करना और वायदा तथा हाजिस भाव, वॉल्यूम एवं उतार-चढ़ाव के बीच संबंध की पड़ताल करना।

यह समझना कि जिस कमोडिटी पर रोक लगाई गई, उसमें अटकलबाजी चिंता का विषय है या नहीं।

वास्तविक बाजार में भागीदारी करने वालों के बीच वायदा बाजार की समझ का पता लगाना। इसमें किसान समुदाय भी शामिल है, जिसके वायदा ट्रेडिंग के बारे में अनुभवों का अध्ययन बहुत कम हुआ है।

अपने शोध के बारे में बोलते हुए प्रोफेसर सार्थक गौरव ने टिप्पणी की, “हमारे शोध में पाया गया है कि पांच निलंबित वस्तुओं के लिए कमोडिटी वायदा कारोबार और हाजिर बाजार की कीमतों के बीच सकारात्मक संबंध का कोई सबूत नहीं है, जो यह दर्शाता है कि वस्तुओं के लिए वायदा कारोबार और खाद्य मुद्रास्फीति के बीच संबंध गलत है। वास्तव में, तीन राज्यों – महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात में कमोडिटी वायदा और हाजिर कीमतों के आंकड़ों और सर्वेक्षणों के विश्लेषण पर आधारित अध्ययन दृढ़ता से स्थापित करता है कि जिन कमोडिटी पर रोक लगाई गई और जिन पर रोक नहीं लगाई गई, दोनों के ही भाव रोक के बाद भी ऊंचे ही बने रहे और कमोडिटी के रिटेल मूल्य पर घरेलू और विदेशी मांग तथा आपूर्ति का असर पड़ता है”। उन्होंने आगे कहा कि “कमोडिटी डेरिवेटिव्स अनुबंध कीमत तय करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं, जो विश्लेषण से स्पष्ट है। रोक के बाद रेफरेंस प्राइसिंग व्यवस्था खत्म हो जाने तथा मूल्य जोखिम प्रबंधन के तरीके बिगड़ जाने के कारण कमोडिटी के बेहतर भाव तय करने की प्रक्रिया पर प्रतिकूल असर पड़ा है। उचित मूल्य पता लगाने की प्रक्रिया में बाधा आई है और बाजार में प्रवेश तथा भागीदारी पर भी असर पड़ा है। “

दोनों अध्ययनों द्वारा सामने रखे गए दृष्टिकोण को जोड़ते हुए, कमोडिटी पार्टिसिपेंट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CPAI) के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री संजय रावल ने कहा, “कमोडिटी और डेरिवेटिव ट्रेडिंग का निलंबन न केवल कृषि मूल्य श्रृंखला पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, बल्कि यह दीर्घ अवधि में तंत्र में निहित विश्वास को भी तोड़ता है। इसलिए, यह ध्यान रखना उचित है कि इस तरह के फैसलों का हमारे कमोडिटी बाजार पर भौतिक और वित्तीय दोनों तरह से दीर्घकालिक परिणाम होते हैं। घरेलू खुदरा कीमतों पर अंतरराष्ट्रीय बाजारों, भू-राजनीतिक वातावरण, मौसम संबंधी विसंगतियों, आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों आदि जैसे संभावित मौलिक मूल्य को प्रभावित करने वाले कारकों के आलोक में इस तरह के प्रतिगामी कदमों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए”। उन्होंने आगे बताया कि, “डेरिवेटिव ट्रेडिंग मूल्य खोज और मूल्य जोखिम प्रबंधन के लिए वायदा बाजार के लिए एक रेफरेंस प्राइसिंग प्रदान करती है। यहां तक कि भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 ने कृषि डेरिवेटिव बाजार द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया है। मेरा ईमानदारी से मानना है कि कमोडिटी वायदा बाजार प्रभावी रूप से मूल्य खोज में तभी योगदान दे सकता है जब कई उपभोक्ता, उत्पादक, व्यापारी और एग्रीगेटर इन बाजारों का उपयोग अपने जोखिम को कम करने के लिए करें।”

इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट आनंद (आईआरएमए) में कमोडिटी मार्केट्स में उत्कृष्टता केंद्र के प्रोफेसर और समन्वयक डॉ. राकेश अरवटिया ने कहा, “कमोडिटी डेरिवेटिव्स बाजार संचालित उपकरण हैं, जो अस्थिर समय के दौरान ढाल के रूप में काम करते हैं – मूल्य श्रृंखला प्रतिभागियों के हितों की रक्षा करते हैं और कमोडिटी बाजारों में स्थिरता लाते हैं। चूंकि ये अपेक्षाकृत नए उपकरण हैं, इसलिए उनके बारे में एक निश्चित स्तर की आशंका है। हालांकि, सरकार को इन उपकरणों का उपयोग किसानों को मूल्य अस्थिरता के बावजूद उनके मूल्य जोखिम का प्रबंधन करने में मदद करने के लिए करना चाहिए, उन्हें सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे वॉल्यूम बढ़े और बाजार का विश्वास मजबूत हो।”

 

कृषि वस्तुओं के निलंबन का खाद्य कीमतों और कृषि पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव –

Impact of suspension of agricultural commodities on food prices and agro-ecosystem