जावेद अख्तर ने हाल ही में एक साक्षात्कार में माधुरी दीक्षित और दिवंगत श्रीदेवी की तुलना हिंदी सिनेमा की दिग्गज अभिनेत्रियों मीना कुमारी और नरगिस से की। उनका कहना है कि दोनों ही अदाकाराएं किसी भी तरह से कम प्रतिभाशाली नहीं थीं, लेकिन उन्हें करियर के दौरान उतनी सशक्त भूमिकाएं नहीं मिलीं जितनी पूर्व की महान अभिनेत्रियों को मिली थीं।
जावेद ने बताया कि नायकों की बदलती छवि ने बड़े पर्दे पर कहानी कहने के तरीके को प्रभावित किया है। उन्होंने उदाहरण के तौर पर मीना कुमारी की साहिब बीबी और गुलाम (1972), नरगिस की मदर इंडिया (1957), और नूतन की बंदिनी (1959) का उल्लेख किया, और कहा कि उन दिनों महिलाओं को ऐसे स्तरित भूमिकाएं मिलती थीं जो आज के सिनेमा में देखने को नहीं मिलतीं।
जावेद ने सवाल उठाया कि श्रीदेवी और माधुरी दीक्षित को क्यों नहीं दी गईं ऐसी यादगार भूमिकाएं, जो उन्हें अपने करियर में मिलनी चाहिए थीं। उन्होंने फिल्म निर्माताओं की आलोचना की कि वे इन अदाकाराओं को उतनी बड़ी भूमिकाएं नहीं दे पाए, जितनी उनके प्रतिभा के हिसाब से होनी चाहिए थीं।
माधुरी दीक्षित ने 1984 में अबोध से अपने करियर की शुरुआत की और तेजाब (1988), राम लखन (1989), त्रिदेव (1989), और दिल तो पागल है (1997) जैसी हिट फिल्मों में अभिनय किया। श्रीदेवी ने मिस्टर इंडिया (1987), चांदनी (1989), सदमा (1983), नगीना (1986), चालबाज़ (1989), और लम्हे (1991) जैसी फिल्मों के लिए प्रसिद्धि पाई।
जावेद अख्तर ने माधुरी दीक्षित और श्रीदेवी को मीना कुमारी और नरगिस जैसा बताया।
Javed akhtar described madhuri dixit and sridevi as meena kumari and nargis